A REVIEW OF BAGLAMUKHI SADHNA

A Review Of baglamukhi sadhna

A Review Of baglamukhi sadhna

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शत्रु का नाश करने वाला…

देवी अपने अंग, परिवार, आयुध और शक्ति सहित पधारें तथा मूर्ति में प्रतिष्ठित होकर हमारी पूजा ग्रहण करें। इस हेतु संपूर्ण शरणागतभाव से देवी से प्रार्थना करना, अर्थात उनका आह्वान करना। आह्वान के समय हाथ में चंदन, अक्षत एवं तुलसीदल अथवा पुष्प लें। आह्वान के बाद देवी का नाम लेकर अंत में ‘नम:” बोलते हुए उन्हें चंदन, अक्षत, तुलसीदिल अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोड़ें।

हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै

कर्ज मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है। कर्ज से मुक्ति अर्थात अपमान से मुक्ति। जब कर्ज कष्ट बन जाए तब माँ बगलामुखी उन लोगों की अति सहायता करती है जो धन, व्यापार और वित्त बाधाओं के कारण कर्ज में डूबे हुए हैं। माँ कर्ज मुक्ति व धन वृद्धि मे सहायक हैं।

जग कल्याणी माँ बगलामुखी का आशीर्वाद प्राप्त करें समस्याओं का निदान करें

षोडशोपचार पूजन, ध्वज चढ़ाने के पश्चात देवी आरती।

Now we're going to show you about detailed introduction to accomplishing the Baglamukhi puja at your home.

If there'll be any litigation, or if there are actually any quarrels or contests, this mantra may enable you to to manage different components of your life.

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तीसरा उपचार: पाद्य (देवी को चरण धोने के लिए जल देना; पाद-प्रक्षालन)

देवताओं के षोडशोपचार पूजन में जनेऊ अर्पण किया जाता है और देवी के षोडशोपचार पूजन में सौभाग्य सूत्र।

To accomplish this, by the following celibacy having a legitimate heart, with full rituals, a person must also pray for forgiveness from your goddess by the subsequent mantra.

श्रीबगला विद्या का बीज पार्थिव है-‘बीजं स्मेरत् पार्थिवम्’ तथा बीज-कोश में इसे ही ‘प्रतिष्ठा कला’ भी कहते हैं।

साधना को आरम्भ करने से पूर्व एक साधक को चाहिए कि वह मां भगवती की उपासना अथवा अन्य किसी भी देवी या देवता की उपासना निष्काम भाव से करे। उपासना का तात्पर्य सेवा से होता है। उपासना के तीन भेद कहे गये हैं:- कायिक अर्थात् शरीर से , वाचिक अर्थात् वाणी से और मानसिक- अर्थात् मन से। जब हम कायिक का अनुशरण करते हैं तो उसमें पाद्य, अर्घ्य, स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य read more आदि पंचोपचार पूजन अपने देवी देवता का किया जाता है। जब हम वाचिक का प्रयोग करते हैं तो अपने देवी देवता से सम्बन्धित स्तोत्र पाठ आदि किया जाता है अर्थात् अपने मुंह से उसकी कीर्ति का बखान करते हैं। और जब मानसिक क्रिया का अनुसरण करते हैं तो सम्बन्धित देवता का ध्यान और जप आदि किया जाता है।

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